तमिलनाडु में आराधना स्थलों से सम्बन्धित कानून/नियम

परिचय

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जिसका अपना एक संविधान है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को देश का नागरिक होने के नाते स्वतंत्र रूप से जीने और लोकतंत्र के लाभों का आनन्द लेने के मौलिक अधिकारों का आश्वासन दिया गया है। [1]भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से उसकी पसन्द के धर्म को मानने, उसका अभ्यास करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालाँकि, उक्त स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था के अन्तर्गत आती है और इसलिए राज्य इस सम्बन्ध में नियम और कानून बना सकता है। इसलिए, तमिलनाडु सरकार ने प्रत्येक धार्मिक आराधना स्थल के निर्माण और उसके रखरखाव के लिए नियम बनाए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अतिक्रमण न हो, और सभी भवनों में नियमों का अनुपालन हो, और कोई टकराव न हो।

तमिलनाडु में सरकारी आदेशों के माध्यम से धार्मिक आराधना स्थलों से सम्बन्धित नियमों का अस्तित्व वर्षों से रहा है तथा ये समय-समय पर विकसित/संशोधित होते रहे हैं। 1920, 1972 और 1997 से पहले के नियमों को तमिलनाडु संयुक्त विकास भवन नियम, 2019 (लेख में आगे इनका सन्दर्भ त-सं-वि-भ-नि, 2019 के रूप में दिया गया है) द्वारा पूरी तरह से निरस्त/प्रतिस्थापित कर दिया गया है। हालाँकि, सरकारी अधिकारियों और न्यायालयों के द्वारा आराधना स्थलों के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र के लिए अनुमोदन या पुन: आवेदन देने का निर्णय लेने के नियम पहले से ही प्रभावी हैं।

धार्मिक भवनों या आराधना स्थलों के सम्बन्ध में तमिलनाडु में पहले अधिनियमित किए गए नियम नीचे दिए गए हैं।

तमिलनाडु में भवन निर्माण नियमों का कालक्रम

तमिलनाडु जिला नगर पालिका अधिनियम, 1920 अध्याय दस नियम 191 [2()]  भवन नियम यदि किसी स्थल पर भवन के निर्माण से किसी वर्ग के व्यक्तियों की धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं, तो सार्वजनिक आराधना के लिए किसी भवन के निर्माण हेतु किसी भी ऐसे स्थल का उपयोग न किया जाए।[2] इसे मूल अधिनियम भी कहा जाता है।

नियम 317 अवैध निर्माण के लिए जुर्माना - यदि किसी भवन या कुएँ का निर्माण या पुनर्निर्माण (क) [कार्यकारी प्राधिकारी] की अनुमति के बिना आरम्भ किया गया हो, या (ख) उन नियमों के विपरीत निर्माण जारी रखा गया हो या पूरा किया गया हो जिन पर ऐसी अनुमति आधारित थी,[3]

माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ता को प्रार्थना न करने का आदेश देने से सम्बन्धित एक मामले में निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता अपनी सामान्य शनिवार की प्रार्थना करने ही वाला था कि तभी कुछ लोग उसके घर में घुस आए और हंगामा करने लगे। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने स्थानीय पुलिस से सम्पर्क किया और अतिक्रमण करने वालों के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया गया। अधिकारियों ने अभियोजन को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के बजाय याचिकाकर्ता को प्रार्थना न करने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि प्रार्थना की गई तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। ये घटनाक्रम वर्तमान रिट याचिका के दायर किए जाने का कारण बने। याचिकाकर्ता ने अपने परिवार और मित्रों के साथ अपने घर में प्रार्थना के शान्तिपूर्ण आयोजन में अधिकारियों को हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए 2020 की रिट याचिका (एमडी) सं. 6951 के माध्यम से न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त 2020 के आदेश में कहा, “वैधानिक नियम के अनुसार, याचिकाकर्ता को परिसर को इस तरह के उपयोग में लाने से पहले जिला कलेक्टर की पूर्व अनुमति लेनी चाहिए थी। ….. तमिलनाडु जिला नगर पालिका अधिनियम, 1920 की धारा 317 के अन्तर्गत यदि किसी भवन का निर्माण या पुनर्निर्माण किसी वैध आदेश के उल्लंघन में या अधिनियम या उसके अन्तर्गत बनाए गए नियम में निहित किसी भी प्रावधान के उल्लंघन में जारी रखा जाता है या पूरा किया जाता है तो यह दण्डनीय हैअतः, इस नियम का उल्लंघन...... मूल अधिनियम की धारा 317 के सन्दर्भ में दण्डात्मक कार्रवाई को आमंत्रित करेगा। इसके अलावा, अवैध रूप से बनाए गए भवन को भी गिराया जाएगा[4] 

तमिलनाडु नगरपालिका भवन नियम, 1972 के अनुसार - नियम 6 (4) स्थल - किसी भी स्थल का उपयोग जिले के कलेक्टर की पूर्व अनुमति के बिना, सार्वजनिक आराधना या धार्मिक उद्देश्य के लिए बनाए जाने वाले भवन के निर्माण के लिए नहीं किया जाना चाहिए, यदि उसकी राय में, स्थल और भवन के उपयोग, अथवा उद्देश्य से सार्वजनिक शान्ति और व्यवस्था को खतरा होने की सम्भावना है तो वह इसकी अनुमति देने से इनकार कर सकता है। परन्तु कलेक्टर के निर्णय के विरूद्ध सरकार के समक्ष अपील की जा सकती हैं जो इस मामले में अपने विवेक के अनुसार आदेश पारित कर सकती है।[5]

तमिलनाडु पंचायत भवन नियम, 1997 - नियम 4 (3) के अनुसार - भवनों और  कुटियाओं के लिए स्थलों की अनुमति हेतु आवेदन: - जिले के कलेक्टर की पूर्व अनुमति के बिना सार्वजनिक आराधना या धार्मिक उद्देश्यों के लिए किसी भवन के निर्माण हेतु किसी भी स्थल का उपयोग न किया जाए, यदि कलेक्टर की राय में, उस स्थल और भवन के उपयोग के उद्देश्य से सार्वजनिक शान्ति और व्यवस्था को खतरा होने की सम्भावना है, तो वह इसकी अनुमति देने से इनकार कर सकता है।[6]

तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियमों के अनुसार, 2019 परिशिष्ट नियम 17 (6) धार्मिक भवनों का निर्माण - सक्षम प्राधिकारी किसी भी धार्मिक संस्थान के सम्बन्ध में भवनों के निर्माण हेतु आए किसी भी भवन आवेदन पर तब तक विचार नहीं करेगा जब तक कि ऐसा आवेदन सम्बन्धित जिला कलेक्टर से प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र के साथ न आया हो।

स्पष्टीकरण - इस नियम के प्रयोजन के लिए, धार्मिक संस्था का अर्थ किसी भी मन्दिर, मठ, मस्जिद, चर्च या किसी अन्य आराधना स्थल से होगा, जो धार्मिक आराधना स्थल के रूप में जनता के लाभ के लिए समर्पित है या जिसका उपयोग इस प्रयोजन के लिए किया जाता है।[7]

उपरोक्त प्रावधानों को आप इस तरह से समझ सकते हैं:

  1. 1920 में बनाए गए नियम में आराधना के लिए ऐसे धार्मिक स्थलों के निर्माण पर रोक लगा दी गई थी जिनसे किसी समुदाय की धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं।
  2. 1972 और 1997 में बनाए गए नियम के अन्तर्गत धार्मिक भवनों/कुटियाओं के लिए जिला कलेक्टर से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य था, जिसका अर्थ यह है कि आधारशिला रखने से पहले भी अनुमति लेनी होगी।
  3. 2019 में लागू नियम के अनुसार धार्मिक भवन या स्थान के निर्माण से पहले जिला कलेक्टर से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। 2019 नियमावली के लागू हो जाने के बाद 1972 एवं 1997 की नियमावलियाँ निरस्त हो गई हैं।[8]

प्राधिकारियों से अनुमति माँगने से सम्बन्धित कानून

1920, 1972, 1997 और 2019 के तमिलनाडु भवन नियम [कृपया कौन सा नियम निर्दिष्ट करें] स्पष्ट रूप से किसी भी धार्मिक आराधना स्थल के लिए आवश्यक नियमों और अनुमति को निर्दिष्ट किया है गया जिसमें वह भवन चाहे छोटा हो या बड़ा, उसके निर्माण के लिए जिला कलेक्टर से पूर्व अनुमति या अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना चाहिए, न कि बाद में अनुमति लेनी चाहिए। जिला कलेक्टर की अनुमति या अनापत्ति प्रमाणपत्र के बाद, भवन मालिकों को भवन योजनाओं की अनुमति लेने के लिए स्थानीय पंचायत, नगर पालिका या निगम/महानगरीय अधिकारियों के समक्ष आवेदन करना होगा। त-सं-वि-भ-नि  2019 में एक गाँव, कस्बे और पंचायत क्षेत्रों में धार्मिक भवन निर्माण के लिए स्पष्ट विनिर्देश प्रदान किए गए हैं। हालाँकि, त-सं-वि-भ-नि 2019 में जिला कलेक्टर के समक्ष पूर्व अनुमति या अनापत्ति प्रमाणपत्र के लिए भेजे गए आवेदनों का उत्तर देने के लिए कोई विशेष समयसीमा नहीं दी गई है। व्यावहारिक रूप से, यह देखा गया है कि ये आवेदन लम्बे समय तक लम्बित पड़े रहते हैं, और उत्तर के लिए माननीय उच्च न्यायालय के कई बार आगे की कार्यवाही करने और हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ती है।

त-सं-वि-भ-नि 2019 इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि यह तमिलनाडु राज्य में नए चर्चों के निर्माणों पर लागू होगा। इसके अलावा, यह तमिलनाडु राज्य में मौजूदा चर्च भवनों में किए गए किसी भी संशोधन पर भी लागू होगा। यह ऐसी प्रत्येक भवन या घर पर भी लागू होगा जिसे आराधना स्थल में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।[9] त-सं-वि-भ-नि 2019 में निम्नलिखित धार्मिक आराधना स्थल की परिभाषाएँ और दिशानिर्देश शामिल किए गए हैं, जिन्हें अधिकतर चर्च/आराधना स्थलों को जानना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए।

इससे सम्बन्धित कानून इस प्रकार हैं:

जोड़ना और/या परिवर्तन करना इसका अर्थ है एक अध्यावास से दूसरे अध्यावास में परिवर्तन करना, या ऐसा संरचनात्मक परिवर्तन जिसमें क्षेत्र में वृद्धि या ऊँचाई में परिवर्तन या भवन के हिस्से को हटाना, या संरचना में कोई परिवर्तन करना, जैसे कि किसी दीवार या दीवार के किसी हिस्से, विभाग, स्तम्भ, बीम, कड़ी, शहतीर, परछत्ती या अन्य सहारा देने वाले किसी तल का निर्माण या उसे या काटकर हटाना, या प्रवेश या निकास के लिए आवश्यक मार्ग में परिवर्तन करना या उसे बन्द करना या किसी जोड़ या साज-सज्जा में उस रीति से परिवर्तन करना” जैसा कि इन नियमों में बताया गया है;[10]

विज्ञापन चिह्न का अर्थ है किसी भी सतह या संरचना पर विज्ञापन या सूचना देने या किसी स्थान, व्यक्ति, सार्वजनिक कार्यक्रम, लेख या वाणिज्यिक वस्तु की ओर जनता को आकर्षित करने के उद्देश्य से बाहर की ओर किसी भी तरह से चिपकाए जाने वाले और प्रदर्शित किए जाने वाले शब्द, अक्षर या चित्र, और जिनके साथ सतह या संरचना जुड़ी हुई हो, या वह सतह किसी भवन का हिस्सा हो, या उससे जुड़ी हुई हो, या किसी पेड़ से या भूमि से या किसी खम्भे, स्क्रीन, बाड़ या विज्ञापन पट से जुड़ी हुई हो या उन्हें किसी ऐसे स्थान या जल निकाय के भीतर या उसके ऊपर प्रदर्शित किया गया हो जो सक्षम प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आता है; [11]

 

“भवनों का ध्वस्त करना” यदि कोई व्यक्ति किसी भवन को पूरी तरह या आंशिक रूप से ध्वस्त करने की मंशा रखता है, तो उसे उस कार्य को करने की अनुमति के लिए और अपने द्वारा की जाने वाली तोड़-फोड़ से सम्बन्धित विलेख सहित ऐसे स्थानीय निकाय या संस्था या व्यक्ति के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत करना होगा, जिसे कार्यकारी प्राधिकारी द्वारा यह शक्ति सौंपी गई है, [12]

 

निम्नलिखित परिवर्तनों के लिए किसी भवन निर्माण की अनुमति आवश्यक नहीं है, जो किसी भी तरह इस नियम की सामान्य भवन आवश्यकताओं, संरचनात्मक स्थिरता और अग्नि सुरक्षा आवश्यकताओं से सम्बन्धित किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करते हैं; (क) पलस्तर और किसी भाग की मरम्मत; (ख) समान ऊँचाई पर स्थित मध्यवर्ती तलों की छत सहित छतों को पुनः बनाना या उनका नवीनीकरण करना; (ग) फर्श डालना और पुनः फ़र्श डालना, (घ) उन खिड़कियों, रोशनदानों और दरवाजों को खोलना और बन्द करना जो दूसरों की सम्पत्तियों और/या सार्वजनिक सड़क या सम्पत्ति की ओर नहीं खुलते; (ङ) गिरी हुई ईंटों/पत्थरों को बदलना (च) चंदवे का निर्माण या पुनः निर्माण करना जो 75 सेमी से अधिक न हो। उसे किसी की भूमि के भीतर की चौड़ाई में और किसी सार्वजनिक सड़क के ऊपर लटका हुआ नहीं होना चाहिए; (छ) रेलिंग का निर्माण या पुनः निर्माण जिसकी लम्बाई 1.5 मीटर से अधिक न हो और साथ ही ऐसी चारदीवारी जिसकी ऊँचाई  2 मीटर (ऊँचाई) से अधिक न हो उसका निर्माण या पुनर्निर्माण, सफेदी, रंगाई-पुताई इत्यादि, जिसमें किसी भी तल में अनुमेय स्पष्ट ऊँचाई पर छज्जे का निर्माण शामिल है, यह ध्यान रखते हुए कि उस छज्जे को किसी भी तरह से मचान आदि के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।[13]

त-सं-वि-भ-नि 2019 के नियम 8 में योजना आवश्यकताओं के लिए दस्तावेजों की एक विस्तृत सूची प्रदान की गई है है जिन्हें सक्षम प्राधिकारी से अनुमति या अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के लिए दिए गए आवेदनों से सम्बन्धित मालिकों के पास होना चाहिए।[14] त-सं-वि-भ-नि 2019 के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकारी के समक्ष किए जाने वाले आवेदनों और दिशानिर्देशों का प्रारूप अनुलग्नक में उपलब्ध है।[15]

तमिलनाडु भवन नियमों से सम्बन्धित निर्णय विधियाँ

मसीही होने के नाते उनके लिए मसीही प्रथाओं के अनुसार मनन करने या आराधना करने के लिए सप्ताह में एक या दो बार निवास/हॉल में एकत्र होना और संगति करने का प्रचलन है। त-सं-वि-भ-नि 2019 में कहा गया है कि निवास के लिए उचित अनुमति के साथ बनाए गए किसी भी भवन का उपयोग केवल आराधना स्थल के रूप में नहीं किया जा सकता है जब तक कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसकी अनुमति न दी गई हो या जिला कलेक्टर से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के बाद उसमें धार्मिक आराधना स्थल के रूप में फेर-बदल न किया गया हो। सक्षम प्राधिकारी को अपने कर्तव्य के रूप में या जनता की शिकायतों के आधार पर हस्तक्षेप करने की शक्ति प्राप्त है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वीकृत भवन या स्थल का उक्त उद्देश्य नियमों के अनुसार है, भले ही उसका अस्तित्व वर्षों से हो। मद्रास उच्च न्यायालय ऐसे आवासीय आराधना स्थलों से सम्बन्धित आदेश/निर्णय सुनाता आ रहा जिन्होंने सरकारी अधिकारियों द्वारा उस स्थल को अनुमति मिलने तक आराधना के लिए उपयोग न करने के सम्बन्ध में जारी किए गए परमादेशों या उत्प्रेषण-लेखों या आदेशों के परिप्रेक्ष्य में न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है।

इस लेख के लिए, मैंने 2019 के बाद से माननीय मद्रास उच्च न्यायालय (मदुरै पीठ सहित) के 66 निर्णयों/आदेशों का उल्लेख किया है। इन 66 निर्णयों/आदेशों में से, 53 आदेश, जो लगभग 80% हैं, इनमें जिला कलेक्टर के उचित अनुमोदन के बिना किसी स्थान पर मसीही आराधना की अनुमति नहीं दी गई है। केवल 13 आदेश, यानी लगभग 20%, ने योग्यता के आधार पर अपनी स्वयं की अनुमोदित भूमि/निवास में जिला कलेक्टर के पुर अनुमोदन या अनापत्ति प्रमाणपत्र के बिना आराधना स्थल को चलाने की अनुमति दी है। मैं बेहतर समझ के लिए नीचे कुछ ऐसी निर्णय विधियों का उल्लेख करूँगा, जिनमें आराधना की अनुमति तो दी गई है परन्तु निवास को आराधना स्थल में बदलने की अनुमति नहीं दी गई है।

आराधना स्थलों को खोलने से सम्बन्धित निर्णय

माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने नीचे दिए गए चयनित मामलों में योग्यता के आधार पर जिला कलेक्टर से किसी पूर्व अनुमोदन या अनापत्ति प्रमाणपत्र के बिना अनुमोदित निवास पर आराधना जारी रखने की अनुमति दी है।

2020 में, एक याचिकाकर्ता ने माननीय मद्रास न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की और जिला कलेक्टर द्वारा निवास को आराधना स्थल/चर्च में परिवर्तित करने के लिए दी गई अनुमति को रद्द करने की माँग की, न्यायालय ने 2020 की रिट याचिका (एमडी) सं.11276  में दिनाँक 10 जनवरी 2022 को पारित आदेश में कहा कि ……….जिला कलेक्टर ने सभी पहलुओं की जाँच करने के अलावा अंततः चौथे प्रतिवादी को चर्च बनाने, या वर्तमान घर को चर्च में परिवर्तित करने की अनुमति दी थी। याचिकाकर्ता के वकील ने शिकायत की कि भवन या अब चर्च, एक आवासीय क्षेत्र में है। हालाँकि, यह देखा गया कि उस विशेष आवासीय क्षेत्र में एक मन्दिर भी है। याचिकाकर्ता को अपने आस-पास मौजूद सभी लोगों के साथ रहना सीखना चाहिए। यह देश विविधता में एकता पर गर्व करता है। एकता में विविधता नहीं हो सकती याचिकाकर्ता को अपने साथ और आसपास रहने वाले लोगों के समूह को स्वीकार करना चाहिए और उसे यह भी स्वीकार करना चाहिए कि विभिन्न आस्थाओं और विभिन्न जाति, पंथ और धर्म के लोगों को संविधान के अन्तर्गत अधिकार दिए गए हैं। यह देश धर्म के अभ्यास को मान्यता देने वाला एक धर्मनिरपेक्ष देश है। याचिकाकर्ता इसके विरुद्ध शिकायत नहीं कर सकता...[16]

अक्टूबर 2022 में, माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने 19 अक्टूबर 2022 के एक सामान्य आदेश के माध्यम से 2017 में दायर 3 रिट याचिकाओं (रिट याचिका संख्या 27120, 27392, 28688/2017) को अनुमति दी, जिसमें कहा गया था, “याचिकाकर्ता के तर्कों के समर्थन में उसकी ओर से उपस्थित विद्वान वकील द्वारा दायर रिट याचिका के मामले में पॉल थैंकम बनाम तमिलनाडु राज्य 2006 की रिट याचिका (एमडी). सं 10782, दिनाँक 14.08.2012 के मामले में इस न्यायालय के विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए निर्णय का सहारा लिया। इस न्यायालय की राय में, किसी निवास स्थान पर इकट्ठा होने और प्रार्थना करने के लिए किसी भी प्राधिकारी से पूर्व अनुमति प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है । हालाँकि, यदि ध्वनि प्रदूषण या किसी अन्य वास्तविक कारण से कोई समस्या उत्पन्न होतीहै, तो सम्बन्धित क़ानून के प्रावधानों के अन्तर्गत आवश्यक कार्रवाई करने के लिए अधिकारी हमेशा स्वतंत्र हैं। परन्तु अधिकारियों को कोई भी कार्रवाई करने से पहले, ठोस सबूतों के आधार पर इस बात से निजी रूप से संतुष्ट होना चाहिए कि भारत के संविधान के भाग III के अन्तर्गत सार्वजनिक व्यवस्था से सम्बन्धित दूसरों के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है या नहीं। किसी भी प्रकार के धर्म को अपनाने और मानने की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की तुच्छ शिकायतों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार प्रभावित होगा। किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के धार्मिक आचरण को प्रभावित करने का अधिकार नहीं है................... व्यक्ति को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे गौरवशाली संविधान में धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे और समानता के मूल्यों को संजोया गया है। विविधता में एकता ही हमारी ताकत है।[17]

होस्ट ऑफ होली गॉड ट्रस्ट ने जिला कलेक्टर के उस आदेश को रद्द करने के लिए, जिसमें ट्रस्ट के सदस्यों को ट्रस्ट के परिसर में प्रार्थना करने के लिए उचित अनुमति लेने का निर्देश दिया गया था, 2019 की रिट याचिका (एमडी) सं. 23562 के माध्यम से मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के समक्ष गुहार लगाई। चूँकि ट्रस्ट के सदस्य मसीही हैं, इसलिए बैठक सत्र का आरम्भ और समापन प्रार्थना से होगा और ट्रस्ट ने जन कल्याण के लिए काम किया है। 21 जनवरी 2020 का आदेश, एक दूसरे आदेश पर आधारित था; “2019 की रिट याचिका (एमडी) सं. 710 में, दिनाँक 11.01.2019, याचिकाकर्ता के समान ही एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर की गई याचिका में उक्त न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी की: उपरोक्त निर्णयों और भारत के संविधान के अन्तर्गत नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों के आश्वासन के बाद, इस न्यायालय की राय में, दूसरों को तंग या परेशान किए बिना और साधारण जानता को बाधा पहुँचाए बिना किसी निवास स्थान पर इकट्ठा होने और प्रार्थना करने के लिए किसी भी प्राधिकारी से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है[18]

पूर्व अनुमति के बिना चल रहे आराधना स्थलों से सम्बन्धित निर्णय

याचिकाकर्ता ने 1986 में कन्याकुमारी जिले में सम्पत्ति खरीदी और कस्बा पंचायत से आवश्यक भवन निर्माण की अनुमति प्राप्त करके एक घर बनाया। याचिकाकर्ता अपने घर में नियमित प्रार्थना करता था परन्तु स्थानीय अधिकारियों ने उसे चर्च के नाम पर भवन परिवर्तन की अनुमति प्राप्त करने का सुझाव दिया था और इसलिए, उसने अपने घर की भवन में प्रार्थना आयोजित करने के लिए जिला कलेक्टर के समक्ष अनुमति देने के लिए आवेदन किया था। हालाँकि, जिला कलेक्टर ने याचिकाकर्ता के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए यह आदेश दिया कि उस घर को चर्च में न बदला जाए क्योंकि कन्याकुमारी सम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील जिला है, भले ही आराधना स्थल किसी कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न किए बिना 28 वर्षों से अस्तित्व में है। याचिकाकर्ता ने 2014 की रिट याचिका (एमडी) सं.16817 के माध्यम से आराधना की अनुमति देने के लिए माननीय मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत की, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने आदेश दिनाँक: 28 अप्रैल 2023 के माध्यम से कहा कि, 2012 की रिट याचिका (एमडी). सं.11780 में दिनाँक 10.08.2022 को दिए गए इस न्यायालय के निर्णय का उल्लेख करना प्रासंगिक है, जिसमें इस न्यायालय ने इस प्रकार कहा है: तमिलनाडु सरकार ने शासनादेश.सं. 916 दिनाँक 23.04.1986 जारी किया है। उक्त रिपोर्ट में, तिरु. न्यायमूर्ति पी. वेणुगोपाल आयोग ने कन्याकुमारी जिले में साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। सुझाव संख्या 2 के अनुसार, सरकार को धार्मिक स्थलों के एक-दूसरे के अत्याधिक सन्निकट निर्माण से बचने के लिए कदम उठाने चाहिए। उक्त सुझाव को सरकार द्वारा उपरोक्त शासनादेश के अन्तर्गत स्वीकार कर लिया गया है....... उपरोक्त तथ्यों के आलोक में, भवन निर्माण नियम किसी आवासीय भवन को प्रार्थना कक्ष में बदलने की अनुमति नहीं देते हैं।[19]

नीचे दिए गए मामले में याचिकाकर्ता अपने परिवार और अन्य ज्ञात समुदाय के सदस्यों के साथ अपने घर/निवास पर आराधना करता है और स्थानीय पुलिस ने उसे सार्वजनिक प्रार्थना और आराधना के लिए अपने घर का उपयोग बन्द करने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता ने नियमित आराधना की अनुमति देने के लिए माननीय उच्च न्यायालय समक्ष याचिका दायर की और न्यायालय ने 2022 की रिट याचिका (एमडी) सं.16226 में पारित 25 जुलाई 2022 के आदेश के माध्यम से कहा,यदि कानून यह निर्धारित करता है कि किसी काम को निश्चित तरीके से किया जाए, तो उसे उसी तरीके से किया जाए न कि किसी अन्य तरीके से। इसके परिणामों को स्पष्ठ रूप से बताया गया है। व्यक्ति को सार्वजनिक आराधना और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किसी भवन के निर्माण हेतु जिला कलेक्टर की पूर्व अनुमति लेनी चाहिए और उसके बाद ही निर्माण शुरू करना चाहिएइस नियम का अर्थ सरल एवं स्पष्ट है। केवल इसके कड़े कार्यान्वयन और अनुप्रयोग की आवश्यकता है। यदि सार्वजनिक आराधना या धार्मिक उद्देश्य के लिए किसी भवन का निर्माण जिला कलेक्टर की पूर्वानुमति के बिना किया गया है, तो कानून को अपना काम करना होगा।[20] 

एक अन्य मामले में, एक याचिकाकर्ता ने एक विशेष घर को बिना पूर्व अनुमति के आराधना स्थल के रूप में उपयोग किए जाने से रोकने के लिए माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और 2019 की रिट याचिका (एमडी) सं.16833 में पारित आदेश दिनाँक 25 अगस्त 2022 के माध्यम से मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने आदेश दिया कि, वर्तमान समस्या अब नई बात नहीं है। कई मामलों में यह टिप्पणी की गई है कि आवासीय घरों को सार्वजनिक धार्मिक प्रार्थना कक्ष में बदला नहीं जा सकता है। भवन निर्माण नियमों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि ऐसा कोई भी निर्माण करने से पहले जिला कलेक्टर की पूर्व अनुमति लेनी होगी। प्रतिवादी किसी वर्तमान आवासीय भवन का उपयोग सार्वजनिक धार्मिक प्रार्थना भवन के रूप में नहीं कर सकता। यह सुनिश्चित करना आधिकारिक उत्तरदाताओं का कर्तव्य है कि याचिका में उल्लिखित स्थल पर कोई सार्वजनिक धार्मिक प्रार्थना आयोजित न की जाए।[21]

न्यायालय से जिला कलेक्टर को परमादेश दिए जाने से सम्बन्धित निर्णय

जैसा कि ऊपर लेख में बताया गया है, चूँकि भवन निर्माण नियम में जिला कलेक्टर के लिए पूर्व अनुमोदन या अनापत्ति प्रमाणपत्र आवेदन का प्रत्युत्तर देने की कोई विशिष्ट समयसीमा नहीं है। यह देखा गया है कि आवेदन जिला कलेक्टर के अकार्य में वर्षों तक लम्बित पड़े रहते हैं, और प्रत्युत्तर पाने के लिए व्यक्ति को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। निर्देश की माँग को समझने के लिए, मद्रास उच्च न्यायालय के 10 आदेशों/निर्णय का हवाला दिया गया और यह जानने के लिए 2 रिट याचिकाकर्ताओं से बात की गई कि क्या जिला कलेक्टर ने न्यायालय द्वारा दी गई समय सीमा में प्रत्युत्तर दिया है। न्यायालय सामान्यतया: पूर्व अनुमोदन या अनापत्ति प्रमाणपत्र के लिए आवेदन का प्रत्युत्तर देने के लिए जिला कलेक्टर को 6 से 12 सप्ताह की समय सीमा देता है।

नीचे एक ऐसा मामला दिया गया है जिसमें याचिकाकर्ता का आवेदन जिला कलेक्टर के कार्यालय में 4 वर्ष से अधिक समय से लम्बित था और याचिकाकर्ता ने 2016 की रिट याचिका (एमडी) संख्या: 4431 के माध्यम से मद्रास उच्च न्यायालय की माननीय मदुरै पीठ के समक्ष याचिका दायर की, न्यायालय ने 20 फरवरी 2020 के आदेश के माध्यम से जिला कलेक्टर को निर्देश दिया,“चूँकि याचिकाकर्ता एक चर्च के निर्माण के लिए अनुमति माँग रहा है, इसलिए इस न्यायालय का विचार है कि उत्तरदाताओं को याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार करना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि याचिकाकर्ता को निर्माण करने की अनुमति दी जा सकती है या नहीं इसलिए, याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना, यह न्यायालय निम्नलिखित निर्देश पारित करने का इच्छुक है। प्रथम प्रतिवादी (जिला कलेक्टर) को निर्देशित किया जाता है कि वह याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन दिनाँक 29.10.2015 पर विचार करे और याचिकाकर्ता के साथ-साथ गाँव में रहने वाले अन्य लोगों को अपनी बात कहने का अवसर देने के बाद इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से बारह सप्ताह की अवधि के भीतर गुण-दोष के आधार पर और कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करे।

निष्कर्ष

उपरोक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि तमिलनाडु राज्य में कहीं भी नए आराधना स्थल के निर्माण के लिए जिला कलेक्टर (डीसी) से पूर्व अनुमति और अनापत्ति प्रमाण पत्र अनिवार्य रूप से आवश्यक है। तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019 के अनुसार धार्मिक भवनों के लिए नियोजन अनुमति और भवन परमिट केवल अनापत्ति प्रमाणपत्र संलग्न करके निगम/महानगर, नगर आयोग या पंचायत कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है।

त-सं-वि-भ-नि 2019 तमिलनाडु राज्य में किसी भी निर्माण सम्बन्धी प्रश्न की विस्तृत मार्गदर्शिका है। अधिक जानकारी के लिए, इस वेबसाइट पर जाएँ: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf । माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों/निर्णयों पर अधिक जानकारी के लिए, इस वेबसाइट पर जाएँ: https://www.mhc.tn.gov.in/judis/index.php/casestatus/caseno

ग्रंथसूची

[1] अनुच्छेद 25, यहाँ उपलब्ध है: https :// Indiankanoon.org/doc/631708/

[2]नियम 191, तमिलनाडु जिला नगर पालिका अधिनियम, 1920, पृष्ठ 173, यहाँ उपलब्ध है: https://www.tn.gov.in/dtp/pdfs/TN_District_Municipalities_Act_1920.pdf  

[3] नियम 317, तमिलनाडु जिला नगर पालिका अधिनियम, 1920, पृष्ठ 249, यहाँ उपलब्ध है: https://www.tn.gov.in/dtp/pdfs/TN_District_Municipalities_Act_1920.pdf

[4] रिट याचिका (एमडी) -6951/2019, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ, पृष्ठ 3, यहाँ उपलब्ध है: https :// Indiankanoon.org/doc/152165342/

[5] नियम 6, तमिलनाडु नगर पालिका भवन नियम, 1972, पृष्ठ 5 और 6, यहाँ उपलब्ध है: https://www.tn.gov.in/tcp/acts_rules/Tn_District_Municipalities_Building_Rules_1972.pdf

[6] नियम 4, तमिलनाडु नगर पालिका भवन नियम, 1997, पृष्ठ 4, यहाँ उपलब्ध है: https://www.tn.gov.in/tcp/acts_rules/Tn_Panchayat_building_rules_1997.pdf

[7] परिशिष्ट 17 (6), तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 175 और 176, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[8] नियम 74, (2), तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 94, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[9] नियम 3, तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 13, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[10] नियम 2, तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 2, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[11]नियम 2, तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 2 और 3, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[12]नियम 12, तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 25, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[13] नियम 10 (5), तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 23 और 24, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[14]नियम 8, तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 17-22, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[15]अनुलग्नक, तमिलनाडु संयुक्त विकास और भवन नियम, 2019, पृष्ठ 95, यहाँ उपलब्ध है: https://chennaicorporation.gov.in/images/TNCDRBR-2019.pdf

[16]रिट याचिका (एमडी) .सं.11276/2020, पृष्ठ 6 और 7, यहाँ उपलब्ध है: paulrajvsthedistrictcollectoron10january2022-409125.pdf (livelaw.in)

[17]2017 की रिट याचिका.सं.27120, 27632, और 28668, मद्रास उच्च न्यायालय, पृष्ठ 12-14, यहाँ उपलब्ध है: https://www.mhc.tn.gov.in/judis/index.php/casestatus/viewpdf/696448

[18] 2019 की रिट याचिका (एमडी) सं.23562, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ, पृष्ठ 3, यहाँ उपलब्ध है: https :// Indiankanoon.org/doc/82605514/

[19] रिट याचिका (एमडी) सं.16817 of 2014, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ, पृष्ठ 6-8, यहाँ उपलब्ध है: https://www.mhc.tn.gov.in/judis/index.php/casestatus/viewpdf/878974

[20] रिट याचिका (एमडी) सं.16226/2019, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ पृष्ठ 3, यहाँ उपलब्ध है: https:// Indiankanoon.org/doc/111958262/

[21] रिट याचिका (एमडी) सं.16833/2019, मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ पृष्ठ 3, यहाँ उपलब्ध है: https://www.mhc.tn.gov.in/judis/index.php/casestatus/viewpdf/843598